सातवें भाव में राहु की स्थिति को वैदिक ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह भाव जीवनसाथी, वैवाहिक संबंध, साझेदारी, सार्वजनिक छवि और दीर्घकालीन संबंधों का प्रतीक होता है। राहु एक छायाग्रही ग्रह है, जो भ्रम, लालच, विदेशी तत्व, मानसिक उलझन, और आध्यात्मिक परीक्षणों से जुड़ा होता है। जब यह ग्रह सातवें भाव में स्थित होता है, तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में असामान्यता, तीव्र आकर्षण, और कभी-कभी अस्थिरता ला सकता है।
राहु जब सातवें भाव में होता है, तो जातक को जीवनसाथी की ओर तीव्र आकर्षण रहता है लेकिन यह आकर्षण अक्सर शारीरिक या भौतिक स्तर पर अधिक होता है। ये लोग जीवनसाथी को लेकर बहुत भावुक, स्वामित्व रखने वाले और कभी-कभी शक करने वाले हो सकते हैं। यदि कुंडली में शुक्र, गुरु या चंद्रमा जैसे शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो, तो यह स्थिति वैवाहिक जीवन में तनाव, गलतफहमियाँ और अलगाव का कारण बन सकती है।
इस स्थान पर राहु व्यक्ति को आकर्षक जीवनसाथी दे सकता है, लेकिन कई बार यह जीवनसाथी विदेशी मूल का होता है या उसकी पृष्ठभूमि जातक से भिन्न होती है। कुछ मामलों में राहु सातवें भाव में वैवाहिक संबंधों में गुप्तता, छुपे हुए रिश्ते या एक्स्ट्रा मैरिटल संबंधों की ओर भी संकेत कर सकता है। यह स्थिति जातक को वैवाहिक जीवन में अधिक अपेक्षाएं रखने वाला और संबंधों में स्थिरता की कमी वाला बना सकती है।
सातवें भाव में राहु व्यक्ति को व्यापारिक साझेदारियों की ओर भी प्रेरित करता है। लेकिन राहु की स्वाभाविक प्रवृत्ति छल और भ्रम की होती है, इसलिए साझेदारी में धोखा या गलत निर्णय की संभावना बनी रहती है। जातक को व्यापार में साझेदार चुनते समय विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए, अन्यथा ये संबंध टूट सकते हैं या कानूनी विवादों का रूप ले सकते हैं।
राहु का यह स्थान व्यक्ति को समाज में एक रहस्यमयी या ग्लैमर से जुड़ी छवि भी दे सकता है। ऐसे लोग अपने व्यक्तित्व में कुछ असाधारण गुण लेकर चलते हैं, जिससे वे सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन कभी-कभी यह ध्यान नकारात्मक भी हो सकता है, विशेष रूप से तब जब राहु पाप ग्रहों के साथ युति में हो। राहु की यह स्थिति व्यक्ति को प्रसिद्धि तो दे सकती है लेकिन यह प्रसिद्धि स्थायी या शांतिपूर्ण नहीं होती।
यदि राहु की महादशा या अंतरदशा व्यक्ति के विवाह के समय में चल रही हो, तो विवाह में विलंब, विरोध या किसी प्रकार की जटिलता आ सकती है। कई बार जातक का विवाह अचानक, गुप्त रूप से या किसी अप्रत्याशित व्यक्ति से होता है। राहु की दशा वैवाहिक जीवन में कुछ असामान्य घटनाओं को जन्म दे सकती है जैसे कि एक-दूसरे से दूरी, संदेह, या अत्यधिक भावनात्मक उतार-चढ़ाव।
इस स्थिति में राहु व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में अपने अधिकारों और नियंत्रण को लेकर अधिक सचेत बना देता है। ये लोग जीवनसाथी पर नियंत्रण रखना चाहते हैं और जब उन्हें लगता है कि चीजें उनके नियंत्रण से बाहर हो रही हैं, तो वे तनावग्रस्त हो सकते हैं। यह स्थिति ईगो क्लैश, बार-बार के झगड़े और समझ की कमी को जन्म दे सकती है। यदि अन्य ग्रहों से सहयोग न हो, तो यह अंततः संबंधविच्छेद या तलाक तक भी जा सकता है।
राहु की यह स्थिति जातक को विपरीत लिंग के प्रति अत्यधिक आकर्षण दे सकती है। विशेषकर यदि शुक्र भी प्रभावित हो, तो यह आकर्षण कभी-कभी वासना में बदल सकता है और जातक अपने वैवाहिक संबंधों के बाहर संबंधों की तलाश कर सकता है। यह स्थिति जातक के लिए सामाजिक रूप से अपमानजनक परिस्थितियाँ भी उत्पन्न कर सकती है यदि इन प्रवृत्तियों को नियंत्रित न किया जाए।
यदि राहु सातवें भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट या युति में हो, तो यह व्यक्ति को बहुत बुद्धिमान, रणनीतिक और कूटनीतिक बनाता है। वे अपने वैवाहिक या व्यावसायिक जीवन में गहराई से सोचकर निर्णय लेते हैं और संबंधों को प्रबंधित करने की अच्छी कला रखते हैं। लेकिन यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति भ्रम और लालच से बचते हुए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुने।
सातवें भाव में राहु का प्रभाव महिलाओं के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ऐसे में स्त्रियों को अपने वैवाहिक जीवन में बार-बार संदेह, अकेलापन या पति के प्रति अविश्वास का सामना करना पड़ सकता है। यदि राहु के साथ मंगल या शनि हो, तो वैवाहिक जीवन में आक्रोश, झगड़े और अलगाव की संभावना अधिक होती है। यह स्थिति कभी-कभी घरेलू हिंसा या कानूनी कार्रवाई तक ले जा सकती है।
यदि राहु सातवें भाव में है और जातक की कुंडली में विवाह का योग प्रबल नहीं है, तो यह व्यक्ति को विवाह से दूर भी रख सकता है। कई बार जातक जीवनभर अविवाहित रहता है या विवाह होता भी है तो वह अधिक समय तक टिक नहीं पाता। वहीं कुछ लोग प्रेम विवाह की ओर आकर्षित होते हैं, जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य न हो।
राहु सातवें भाव में व्यक्ति को अपने संबंधों में पारदर्शिता और ईमानदारी की ओर प्रेरित करता है, लेकिन राहु की प्रकृति भ्रम की होने के कारण व्यक्ति बार-बार खुद भी भ्रमित होता है। उसे अपने रिश्तों को संभालने के लिए बहुत धैर्य और आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है। यदि जातक अपने जीवनसाथी को लेकर अत्यधिक स्वामित्व की भावना छोड़ दे और विश्वास बनाए रखे, तो वह राहु के प्रभाव को सकारात्मक रूप में अनुभव कर सकता है।
इस स्थिति में राहु से राहत पाने के लिए उपाय किए जा सकते हैं जैसे कि हर शनिवार को राहु मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ का जाप करना, नीला या धातु का दान देना, सरसों के तेल से छाया दान करना और अपने जीवनसाथी के साथ संवाद बढ़ाना। साथ ही ध्यान, योग और रिश्तों में पारदर्शिता से राहु की नकारात्मकता को कम किया जा सकता है।
राहु का सातवें भाव में होना व्यक्ति को एक भावनात्मक योद्धा बनाता है, जो संबंधों में संघर्षों से नहीं डरता। यदि वह अपनी अंतरात्मा की आवाज सुने और दूसरों के प्रति सहानुभूति रखे, तो यह राहु उसे जीवनसाथी के साथ गहराई से जुड़ने की शक्ति भी देता है। यह स्थान भ्रम और जागरूकता के बीच की जंग है, जिसमें जीत उन्हीं की होती है जो खुद को जान पाते हैं।