शनि जयंती हिन्दू धर्म में एक विशेष और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन न्याय के देवता, कर्मों के फल देने वाले और नवग्रहों में प्रमुख स्थान रखने वाले शनि देव का जन्म उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को हुआ था और इसी कारण हर साल यह तिथि “शनि जयंती” के रूप में मनाई जाती है। वर्ष 2025 में शनि जयंती का पर्व एक बार फिर से श्रद्धा, भक्ति और भयमिश्रित आस्था के साथ मनाया जाएगा।
शनि देव का नाम सुनते ही कई लोगों के मन में डर बैठ जाता है, क्योंकि उन्हें क्रूर ग्रह माना गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि शनि देव न्यायप्रिय हैं। वे व्यक्ति को उसके कर्मों का यथायोग्य फल देने में विश्वास रखते हैं। जो लोग सत्य, ईमानदारी और मेहनत से जीवन जीते हैं, उनके लिए शनि देव वरदान साबित होते हैं, जबकि जो लोग छल, कपट, अधर्म और पाप के मार्ग पर चलते हैं, उन्हें शनि देव कठोर दंड देते हैं।
शनि जयंती का उद्देश्य केवल पूजा या व्रत नहीं है, बल्कि यह दिन आत्मनिरीक्षण, सुधार और अच्छे कर्मों की ओर लौटने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन खासकर उन लोगों के लिए अत्यधिक प्रभावशाली होता है जिनकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैया या अशुभ दृष्टि चल रही हो। इस दिन व्रत, दान, पूजा और मंत्र जाप करने से शनि की कृपा प्राप्त की जा सकती है और जीवन में स्थिरता, संयम व सफलता को प्राप्त किया जा सकता है।
शनि जयंती 2025 की तिथि और दिनांक (Date and Timing of Shani Jayanti 2025)
शनि जयंती 2025 में ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाएगी, जो कि हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यंत पवित्र दिन होता है। अमावस्या तिथि स्वयं में एक शक्तिशाली तिथि होती है, और जब वह शनि देव जैसे कर्मफल दाता ग्रह के जन्मदिन के रूप में आती है, तब इसका धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व कई गुना बढ़ जाता है। वर्ष 2025 में शनि जयंती 27 मई को मनाई जाएगी, जो मंगलवार का दिन है।
इस दिन अमावस्या तिथि का आरंभ 26 मई को दोपहर से हो सकता है और यह 27 मई को दोपहर या शाम तक चलेगी, जो स्थान-विशेष पर निर्भर करेगा। विशेष रूप से शनि पूजा, शनि यंत्र स्थापना, शनि स्तोत्र का पाठ और हवन जैसे कार्यों के लिए अमावस्या की मध्यरात्रि या प्रातःकाल का समय सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
पंचांग के अनुसार इस दिन का नक्षत्र, योग और करण भी पूजा-पाठ के समय पर प्रभाव डालते हैं। इसलिए शनि जयंती के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त देखकर ही कोई धार्मिक अनुष्ठान करना उचित होता है। बहुत से लोग इस दिन उपवास रखते हैं और सूर्य उदय से पहले स्नान करके शनि देव की मूर्ति को तेल, तिल, उड़द और फूलों से अर्पित करते हैं। यह न केवल ग्रहदोष से मुक्ति दिलाता है, बल्कि शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है।
शनि जयंती की तिथि को जानने का महत्व इस कारण भी होता है क्योंकि यह दिन शनि साढ़ेसाती या ढैय्या से प्रभावित जातकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होता है। सही समय पर की गई पूजा और उपाय से न केवल जीवन में आ रही रुकावटें कम होती हैं, बल्कि धन, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति भी होने लगती है।
शनि देव कौन हैं? (Who is Lord Shani?)
शनि देव हिंदू धर्म के नवग्रहों में सबसे अधिक रहस्यमयी, शक्तिशाली और निर्णायक ग्रह माने जाते हैं। इन्हें कर्मफलदाता और न्याय के देवता कहा जाता है। शनि देव का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक भय का भाव उत्पन्न हो जाता है, लेकिन वास्तव में वे किसी से अन्याय नहीं करते। वे केवल व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देते हैं—चाहे वो अच्छे हों या बुरे। यही कारण है कि वे ‘न्यायप्रिय देवता’ कहलाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव का जन्म सूर्य देव और छाया (संवर्णा) से हुआ था। छाया, संज्ञा की छाया रूपी प्रतिरूप थीं, जिन्हें सूर्य देव ने संज्ञा के तपस्या पर जाने के बाद स्वीकार किया था। शनि का जन्म एक तपस्विनी माँ की कोख से हुआ, और वे स्वयं भी अत्यंत तपस्वी और गंभीर स्वभाव के देवता माने जाते हैं।
शनि देव का वर्ण कृष्णवर्ण (गहरा नीला या काला) बताया गया है, जो उनके गंभीर और गूढ़ स्वभाव को दर्शाता है। उनका वाहन कौआ (काक) है, जो संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है। उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल और गदा रहती है, जो यह संकेत देती है कि वे अधर्म और अन्याय को सहन नहीं करते।
ऐसा माना जाता है कि शनि की दृष्टि सीधी पड़ जाए तो वह अत्यंत घातक हो सकती है, इसलिए शनि देव अपनी दृष्टि नीचे रखते हैं और सीधे नहीं देखते। उनके प्रभाव से ही इंसान को जीवन में संघर्ष, परीक्षा और आत्मनिरीक्षण के अवसर मिलते हैं, जो उसे एक बेहतर इंसान बनाते हैं। शनि की कृपा हो जाए तो राजा को भी रंक से सम्राट बना सकते हैं, लेकिन अगर नाराज हो जाएं तो सब कुछ छीन भी सकते हैं।
शनि देव केवल भोग नहीं, योग का रास्ता दिखाते हैं। वे आपको सिखाते हैं कि मेहनत, संयम, धैर्य और आत्मनियंत्रण से ही वास्तविक सफलता संभव है। यही कारण है कि शनि देव का स्थान न केवल ज्योतिष में, बल्कि मानव जीवन के आध्यात्मिक मार्ग में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शनि जयंती पर पूजा विधि (Shani Jayanti 2025 Puja Vidhi)
शनि जयंती के दिन पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन की गई उपासना से शनि देव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इस दिन को व्रत, दान और तप का पर्व माना जाता है। पूजा की शुरुआत प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करके होती है। अधिकतर श्रद्धालु काले वस्त्र पहनते हैं, जो शनि देव के प्रिय माने जाते हैं। स्नान के बाद पूजा स्थल को साफ कर वहां शनि देव की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। इसे पंचामृत से स्नान कराया जाता है, फिर सरसों के तेल का अभिषेक किया जाता है।
शनि देव की पूजा में विशेष रूप से काले तिल, काली उड़द, नीले या काले फूल, लोहा, और नीले वस्त्र का प्रयोग किया जाता है। सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी होता है। “ॐ शं शनैश्चराय नमः” इस बीज मंत्र का 108 बार जाप करने से शनि दोषों का शमन होता है। इसके अलावा “शनि गायत्री मंत्र” और “दशरथ कृत शनि स्तोत्र” का पाठ भी उत्तम फल देता है।
पूजा के बाद पीपल वृक्ष की परिक्रमा करना, उसकी जड़ में दीपक लगाना, और वहां काले तिल चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। कुछ भक्त हनुमान जी की पूजा भी करते हैं, क्योंकि हनुमान जी को शनि देव का रक्षक और मित्र माना जाता है। कहा जाता है कि जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैया चल रही होती है, अगर वे हनुमान जी की पूजा करते हैं तो उन्हें शनि के कोप से बचाव मिलता है।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को काले वस्त्र, तिल, लोहा, तेल और अन्न का दान करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पूजा के अंत में शनि देव से प्रार्थना की जाती है कि वे जीवन में न्याय, स्थिरता और शांति प्रदान करें तथा बुरे कर्मों से रक्षा करें।
शनि जयंती पर क्या करें (What to Do on Shani Jayanti)
शनि जयंती पर सकारात्मक कर्म, शुद्ध भावना और आध्यात्मिक साधना अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर स्वच्छ और काले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है। व्रत रखना, विशेषकर निर्जला या फलाहारी व्रत, शनि देव की कृपा पाने का श्रेष्ठ माध्यम माना जाता है। इस दिन सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि मंदिर या पीपल के वृक्ष के नीचे रख देना अत्यंत फलदायी होता है।
शनि मंत्रों का जाप जैसे “ॐ शं शनैश्चराय नमः”, “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” अथवा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना मानसिक शांति और ग्रहदोष निवारण में सहायक होता है। काले तिल, काली उड़द, कंबल, लोहे के बर्तन और सरसों तेल का दान करना पुण्यदायी माना जाता है। इसके साथ-साथ, किसी जरूरतमंद को भोजन कराना, पशु-पक्षियों को दाना-पानी देना भी शनि देव की कृपा पाने के सर्वोत्तम उपायों में शामिल है। हनुमान जी की पूजा, सुंदरकांड पाठ या बजरंग बाण का पाठ करना भी अत्यधिक लाभकारी होता है क्योंकि हनुमान जी को शनि देव का मित्र और शनि दोषों के निवारक के रूप में पूजा जाता है।
शनि जयंती पर क्या न करें (What Not to Do on Shani Jayanti)
शनि जयंती पर कुछ चीजों से विशेष रूप से बचना चाहिए, क्योंकि इस दिन किया गया कोई भी गलत कार्य व्यक्ति को तात्कालिक या दीर्घकालिक कष्टों में डाल सकता है। सबसे पहले, किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच, झूठ बोलना, दूसरों की बुराई करना या मानसिक हिंसा करने से बचना चाहिए। शनि देव को अधर्म, छल-कपट और अन्याय अत्यंत अप्रिय हैं, इसलिए अनैतिक कार्य इस दिन वर्जित माने जाते हैं।
इस दिन मद्यपान, मांसाहार और नशे से दूरी बनाकर रखना अति आवश्यक है क्योंकि यह सभी शनि की दृष्टि में अपवित्र कर्मों की श्रेणी में आते हैं। किसी गरीब या असहाय व्यक्ति का अपमान करना, पशु-पक्षियों को कष्ट देना या वृद्धों से कठोर व्यवहार करना भी शनि दोष को बढ़ा सकता है।
शनि देव की मूर्ति या चित्र के सामने सीधी दृष्टि से देखने से भी बचना चाहिए क्योंकि मान्यता है कि उनकी दृष्टि बहुत तीव्र और कर्मानुसार फल देने वाली होती है। पूजा करते समय मन को शांत और श्रद्धामय बनाए रखना चाहिए, क्योंकि आध्यात्मिक अनुशासन ही शनि जयंती के दिन की सबसे बड़ी साधना है।
शनि का ज्योतिषीय महत्व (Astrological Significance of Saturn)
ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह को “कर्म का न्यायाधीश” कहा गया है। यह ग्रह व्यक्ति के जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव, संघर्ष, अनुशासन और जीवन की स्थिरता से जुड़ा होता है। शनि धीमी गति से चलने वाला ग्रह है और एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहता है। जब यह जन्मकुंडली के प्रमुख भावों से गुजरता है—विशेषकर चंद्र के आसपास—तब साढ़ेसाती या ढैय्या जैसे प्रभाव शुरू होते हैं।
शनि की साढ़ेसाती कुल साढ़े सात वर्षों की होती है और यह तीन राशियों को प्रभावित करती है: वह राशि जिसमें चंद्रमा स्थित है और उसकी पूर्ववर्ती तथा उत्तरवर्ती राशियाँ। यह समयकाल व्यक्ति के लिए चुनौतियों, मानसिक और भौतिक परीक्षा, आत्ममंथन और सुधार का होता है। लेकिन जो लोग अपने कर्मों में सजग, ईमानदार और श्रमशील होते हैं, शनि उन्हें उसी अनुपात में सफलता और स्थायित्व भी देता है।
शनि जीवन में देरी, परीक्षा और धैर्य का प्रतीक है। यह व्यक्ति को कर्म के माध्यम से सफलता का मार्ग दिखाता है। कई बार यह आर्थिक हानि, मानसिक तनाव, सामाजिक कठिनाइयाँ देता है—परंतु उद्देश्य केवल आत्मशुद्धि होता है। कुंडली में अगर शनि बलवान हो तो व्यक्ति को न्यायप्रिय, अनुशासित, आध्यात्मिक और उच्च नैतिकता वाला बना सकता है।
शनि गोचर 2025 और राशियों पर प्रभाव (Saturn Transit 2025 & Zodiac Effects)
वर्ष 2025 में शनि मकर राशि से कुम्भ राशि में भ्रमण कर रहे होंगे और इसका प्रभाव सभी राशियों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ेगा। जिन जातकों की कुंडली में शनि लग्न, चंद्र या दशा-महादशा से प्रभावित होंगे, उन्हें इस समय विशेष सावधानी रखनी होगी। विशेष रूप से कुंभ, मीन और मकर राशियों के जातकों के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण और धीमी गति से लेकिन स्थिर प्रगति का रहेगा।
शनि की दृष्टि जब शुभ भावों पर पड़ती है तो व्यक्ति को दीर्घकालिक स्थायित्व, प्रशासनिक सफलता, भूमि-भवन में लाभ, और आत्मसंयम जैसी उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं। वहीं अगर यह अशुभ स्थिति में हो, विशेषकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में, तो कोर्ट-कचहरी, ऋण, शत्रु बाधा और मानसिक तनाव जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसीलिए शनि के प्रभाव को समझना और उचित उपाय करना आवश्यक होता है।
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