आठवां भाव वैदिक ज्योतिष में रहस्यों, मृत्यु, पुनर्जन्म, गुप्त ज्ञान, वित्तीय उत्तराधिकार और अचानक होने वाली घटनाओं से जुड़ा हुआ होता है। जब राहु इस भाव में स्थित होता है, तो यह स्थिति जातक के जीवन में कई अप्रत्याशित और रहस्यमयी मोड़ ला सकती है। राहु का स्वभाव ही भ्रम, असंतुलन और विचित्रता से जुड़ा होता है, और जब यह गहरे, रहस्यमयी आठवें भाव में प्रवेश करता है, तो जातक का जीवन एक रहस्यमय यात्रा बन जाता है।
इस स्थिति में राहु जातक को गूढ़ विषयों जैसे ज्योतिष, तंत्र, मनोविज्ञान, मृत्यु के बाद की प्रक्रिया और आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित कर सकता है। ये लोग अक्सर गहराई से सोचने वाले, अत्यधिक विश्लेषणात्मक और जीवन के रहस्यों को जानने के इच्छुक होते हैं। लेकिन यह रुचि कभी-कभी अंधविश्वास या गलत मार्ग की ओर भी ले जा सकती है यदि जातक विवेकपूर्ण निर्णय न ले।
आठवें भाव में राहु होने से जातक को अचानक लाभ या हानि की संभावना अधिक होती है। यह स्थिति विरासत, बीमा, निवेश या जीवनसाथी के धन से संबंधित अप्रत्याशित लाभ दे सकती है, लेकिन साथ ही वित्तीय धोखाधड़ी या नुकसान की संभावनाएं भी बनती हैं। राहु की यह स्थिति व्यक्ति को रिस्क लेने वाला बना सकती है, विशेषकर जब बात पैसे या गुप्त योजनाओं की हो।
राहु जब इस भाव में होता है, तो जातक का जीवन कई बार मृत्यु जैसे अनुभवों से गुजरता है, हालांकि इसका अर्थ हमेशा शारीरिक मृत्यु नहीं होता। यह मानसिक, भावनात्मक या जीवनशैली में बड़े बदलाव की ओर संकेत करता है। ऐसे लोग जीवन में कई बार अपनी पहचान, रिश्तों और सोच को पूरी तरह बदल सकते हैं, जैसे पुनर्जन्म हो गया हो।
इस स्थिति में राहु व्यक्ति के यौन जीवन को भी प्रभावित करता है। ये लोग यौन विषयों को लेकर बहुत अधिक जिज्ञासु होते हैं और कभी-कभी यह जिज्ञासा असामान्य या सामाजिक रूप से अस्वीकार्य प्रवृत्तियों में बदल सकती है। यदि कुंडली में शुक्र या मंगल से राहु प्रभावित हो, तो व्यक्ति का यौन जीवन अत्यधिक जटिल या विवादास्पद हो सकता है।
आठवें भाव में राहु जातक को दुर्घटनाओं, सर्जरी, या स्वास्थ्य से जुड़ी जटिलताओं की ओर भी संकेत देता है। विशेषकर जब यह भाव पाप ग्रहों से प्रभावित हो, तो व्यक्ति को गंभीर बीमारियाँ, गुप्त रोग या बार-बार अस्पताल जाना पड़ सकता है। यह स्थिति जातक को मेडिकली या रिसर्च से जुड़े करियर की ओर भी ले जा सकती है।
इस स्थान पर राहु का प्रभाव जातक को मानसिक रूप से बहुत गहराई से सोचने वाला बनाता है, लेकिन कभी-कभी यह गहराई भय, चिंता और अवसाद में बदल सकती है। ऐसे लोग दूसरों से अपने विचार और भावनाएं छुपाकर रखते हैं, जिससे वे भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। यदि इन भावनाओं को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।
आठवें भाव में राहु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में रहस्य और छुपी हुई ताकतों को उजागर करता है। ऐसे लोग दूसरों के गुप्त पक्षों को समझने में निपुण होते हैं, लेकिन कभी-कभी यह प्रवृत्ति जासूसी, नियंत्रण की भावना या दूसरों की निजी ज़िंदगी में हस्तक्षेप करने की ओर भी ले जा सकती है। यह स्थिति रिश्तों में अविश्वास और तनाव ला सकती है।
राहु की यह स्थिति व्यक्ति को मृत्यु के बाद की अवधारणाओं, पुनर्जन्म या परालौकिक शक्तियों में रुचि दिला सकती है। ये लोग अक्सर जीवन के परे की सच्चाइयों को जानने की इच्छा रखते हैं, और तंत्र, साधना या अन्य गूढ़ साधनों की ओर आकर्षित हो सकते हैं। यदि राहु शुभ ग्रहों से युक्त हो, तो यह रुचि आध्यात्मिक ज्ञान में बदल सकती है।
आठवें भाव में राहु व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर भी प्रभाव डालता है क्योंकि यह भाव जीवनसाथी के संसाधनों और गुप्त पहलुओं से जुड़ा है। ऐसे में व्यक्ति को जीवनसाथी से जुड़े रहस्य, झगड़े या वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ सकता है। यदि शनि या मंगल जैसे ग्रहों से राहु प्रभावित हो, तो विवाह में तनाव या जीवनसाथी से दूरी की संभावना बढ़ जाती है।
यदि राहु की महादशा या अंतरदशा जातक के जीवन के संवेदनशील समय में चल रही हो, तो यह उसे किसी गंभीर घटना या आध्यात्मिक मोड़ की ओर ले जा सकती है। यह स्थिति व्यक्ति को पूरी तरह बदल सकती है—या तो वह आत्मज्ञान की ओर बढ़ेगा, या फिर मानसिक उलझनों में उलझ जाएगा। राहु की दशा में रहकर व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य और आत्मा की पुकार को समझने का मौका मिलता है।
राहु आठवें भाव में होने पर व्यक्ति को गहराई से स्वयं का निरीक्षण करना चाहिए और अपने भीतर छुपे डर, वासनाओं और भ्रमों का सामना करना चाहिए। यह स्थिति यदि आत्मनिरीक्षण, साधना और सकारात्मक दृष्टिकोण से जी जाए, तो जातक आध्यात्मिक रूप से अत्यंत ऊँचाई प्राप्त कर सकता है। वहीं यदि यह राहु निगेटिव प्रवृत्तियों में चला जाए, तो व्यक्ति आत्म-विनाश की ओर बढ़ सकता है।
राहु से संबंधित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। जैसे कि राहु के बीज मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ का नियमित जाप, शनिवार को नीले कपड़े, तिल या सरसों का तेल दान करना, छाया दान करना और गुप्त दान करना। इसके अलावा ध्यान, योग और जीवन में सत्य व ईमानदारी अपनाकर राहु के भ्रमित प्रभाव को शांत किया जा सकता है।
आठवें भाव में राहु व्यक्ति के जीवन में ऐसा मोड़ लाता है जो उसे या तो आत्मज्ञान की ओर ले जाता है या आत्म-विनाश की कगार तक पहुँचा देता है। यह राहु एक परिक्षा की तरह होता है, जो जातक से यह अपेक्षा करता है कि वह अपने भीतर छिपे अंधकार को प्रकाश में बदल सके। यदि व्यक्ति साहस, सच्चाई और साधना के साथ जीवन जिए, तो यह राहु उसे वह शक्ति दे सकता है जो सामान्यतः दुर्लभ होती है।