A young African American woman casting her ballot in 1964

“लालू यादव का चुनाव आयोग और संघ पर बड़ा हमला: ‘बिहार में वोटरों को निशाना बना रही है सत्ता'” “Lalu Yadav Slams Election Commission and RSS: ‘Targeting Bihar Voters Under the Guise of Verification'”

बिहार की सियासी सरगर्मी एक बार फिर तेज हो गई है, और इस बार केंद्र में हैं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव। उन्होंने राज्य में चल रही मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर सीधा हमला बोला है। उनका आरोप है कि यह कवायद एक सुनियोजित साजिश है, जिसके तहत दलितों, पिछड़ों और गरीब तबके के मताधिकार को खत्म किया जा रहा है। लालू ने इसे ‘बैकडोर एनआरसी’ करार देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र पर हमला है और बिहार की जनता इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।

लालू यादव का कहना है कि चुनाव आयोग की यह कार्रवाई सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि गहराई से राजनीतिक प्रेरित है। उन्होंने दावा किया कि सत्ताधारी दल के इशारे पर यह मतदाता सूची सुधार की आड़ में एक वर्ग विशेष के नामों को सूची से हटाने की साजिश है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह की प्रक्रिया के पीछे RSS की सोच काम कर रही है, जो लंबे समय से देश की सामाजिक बनावट को बदलने की कोशिश कर रही है। उनका मानना है कि वोटर वेरिफिकेशन के नाम पर बहुसंख्यक गरीब और मजदूर वर्ग को जानबूझकर प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा है।

इस प्रक्रिया के तहत ग्रामीण क्षेत्रों, झुग्गी बस्तियों और शहरी झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोगों को नोटिस थमाए जा रहे हैं। जिनके पास स्थायी पता या सभी दस्तावेज नहीं हैं, उनके नामों को हटाने की चेतावनी दी जा रही है। इस पर लालू ने कहा कि एक गरीब दिहाड़ी मजदूर, जो रोज़ दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष करता है, उससे यह अपेक्षा करना कि वह सभी दस्तावेज दिखाए, सरासर अन्याय है। उन्होंने पूछा कि क्या ये प्रक्रिया सिर्फ अमीरों के लिए है? क्या यह लोकतंत्र सिर्फ पढ़े-लिखे और स्थायी निवासियों के लिए रह गया है?

लालू यादव ने इस मुद्दे को जातीय जनगणना से भी जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और उसके सहयोगी दल जानबूझकर जातिगत जनगणना के मुद्दे को दबाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उससे उनकी असलियत सामने आ जाएगी। अब वे एक नई चाल के तहत वोटर लिस्ट की सफाई के नाम पर कमजोर वर्गों को बाहर करने की नीति पर काम कर रहे हैं। उन्होंने जनता से आह्वान किया कि इस लड़ाई को वे केवल राजद की नहीं, बल्कि बिहार की अस्मिता की लड़ाई समझें।

इस पूरे विवाद में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मतदाता सत्यापन प्रक्रिया विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू की गई है। ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष है? क्या यह सभी वर्गों के लिए समान रूप से लागू हो रही है, या फिर किसी खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है? लालू ने इन सवालों को उठाते हुए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह जताया है। उन्होंने मांग की है कि आयोग इस प्रक्रिया को तत्काल रोके और सभी राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श कर दोबारा एक पारदर्शी और समावेशी प्रक्रिया तय करे।

बिहार के राजनीतिक गलियारों में लालू के इस बयान के बाद हलचल मच गई है। राज्य की अन्य विपक्षी पार्टियों—जैसे कांग्रेस, वामपंथी दल और AIMIM—ने भी इस मुद्दे पर चुनाव आयोग की आलोचना की है। इन दलों का कहना है कि मतदाता सूची में संशोधन एक नियमित प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसे इस तरह से राजनीतिक रंग देना और एक खास समय पर लागू करना बहुत संदेहास्पद है। खासकर मानसून के दौरान, जब बिहार के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में होते हैं, उस समय वोटर वेरिफिकेशन करवाना ग्रामीण और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए और भी मुश्किल हो जाता है।

छोटे शहरों और गांवों में रहने वाले प्रवासी मजदूर, जो साल के किसी भी समय काम की तलाश में बाहर रहते हैं, उनके नामों को हटाए जाने की संभावना बढ़ जाती है। लालू का कहना है कि इन लोगों को अगर वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया, तो यह लोकतंत्र की आत्मा को ही कुचलने जैसा होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक खेत मजदूर, जो हर छह महीने में काम की तलाश में झारखंड या पंजाब चला जाता है, उसे वोटर सूची से हटाने का कोई औचित्य नहीं है।

लालू यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे हर गांव, हर पंचायत में जाकर लोगों को इस प्रक्रिया के खिलाफ जागरूक करें। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी, तो सड़क पर उतरकर आंदोलन भी किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह लड़ाई सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि संविधान और लोकतंत्र को बचाने की है। उन्होंने सभी क्षेत्रीय दलों से एकजुट होकर इस मुद्दे पर साझा रणनीति बनाने की अपील की है।

इस मुद्दे के सामाजिक प्रभाव भी दूरगामी होंगे। यदि गरीब और हाशिये पर खड़े लोगों के नाम मतदाता सूची से हटते हैं, तो उनकी आवाज़ भी लोकतंत्र में कमजोर हो जाएगी। इसका असर चुनावी परिणामों पर तो पड़ेगा ही, लेकिन इससे ज्यादा नुकसान उस लोकतांत्रिक संरचना को होगा जिसकी बुनियाद ही ‘एक वोट, एक मूल्य’ के सिद्धांत पर टिकी है।

निष्कर्ष
लालू प्रसाद यादव का यह प्रहार केवल एक राजनेता का राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठाई गई एक चेतावनी है। उन्होंने वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया को लेकर जो सवाल उठाए हैं, वे सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गंभीर संदेश लेकर आते हैं। यदि मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाना शुरू हुआ और उसमें पारदर्शिता नहीं रही, तो लोकतंत्र की नींव डगमगा सकती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव आयोग और सरकार इस आरोपों का क्या जवाब देती है और जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।


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