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“शीर्ष न्यायालय का निर्णय: पूर्व CJI चंद्रचूड़ को आधिकारिक आवास से हटाने का आदेश” “Supreme Court Orders Removal of Ex‑CJI Chandrachud from Official Residence After Tenure Ends”

एक ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (CJI), डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़, को उनके सेवानिवृत्ति के बाद आधिकारिक आवास खाली करना चाहिए। यह आदेश आया है क्योंकि उनका यहां ठहरना अब वाजिब़ अवधि से परे माना गया है। इस मुद्दे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा है और कहा है कि बिना किसी और देरी के यह कदम तुरंत उठाया जाए।

चंद्रचूड़ ने 10 नवंबर 2024 को CJI पद से सेवानिवृत्ति ग्रहण किया। इस पद की समाप्ति के बाद भी वे सरकारी आवास में रह रहे थे, जो कि नियमों के मुताबिक कुछ ही अवधि तक स्वीकार्य होता है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्पष्ट किया गया कि अब भूमिका और ऑफिसियल कर्तव्यों का समय पूरा हो चुका है और दी गई अवधि अब समाप्त हो गई है।

आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि न्यायालय का यह कदम न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और सिस्टम की पारदर्शिता को बनाए रखने की दिशा में पहचाना जा रहा है। राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे उच्च पदों पर सेवानिवृत्त व्यक्तियों को भी नियमों के अनुसार सरकारी आवास खाली करना होता है, इसलिए CJI पद के मामले में विलंब स्वीकार्य नहीं है। इससे उच्चतम न्यायालय की गरिमा को भी बचाया जा सकेगा और नियम-विरुद्ध ठहराव पर रोक लगेगी।

इस आदेश के बाद, केंद्र सरकार ने CJI चंद्रचूड़ को एक उपयुक्त वैकल्पिक निजी आवास प्रदान करने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्हें तुरंत वहां स्थानांतरित होने का निर्देश भी दिया गया है, ताकि किसी तरह का प्रशासनिक गतिरोध या विवाद न उत्पन्न हो। यह कदम न्यायिक प्रणाली में नियमों के पालन की सरल लेकिन प्रभावशाली मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।

चंद्रचूड़ का परिवार और वह स्वयं सार्वजनिक जीवन के उच्चतम स्तर पर रहे हैं। लेकिन अब चंद्रचूड़ को अपनी सेवा अवधि के बाद वैधानिक अवधि में सरकारी आवास छोड़ देना होगा। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि कोई भी पदकाल समाप्त होने के बाद सरकारी सुविधाओं का दायरा समाप्त हो जाता है। यह नियम सभी वरिष्ठ पदों पर निरंतर समान रूप से लागू होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से न्यायपालिका की छवि में ईमानदारी और समता को बल मिलेगा। यह दिखाता है कि न्यायालय भी खुद को नियमों से ऊपर नहीं समझता। भविष्य में यह आधार बन सकता है कि किसी भी धर्माधिकारी पद से सेवानिवृत्ति लेने के बाद सरकारी सुविधाओं को लेकर किसी भी तरह की कोई विशेष समझौता या विलम्ब स्वीकार्य नहीं है।

इस पूरे मामले ने न्यायिक प्रक्रिया, सरकारी नियमों और संस्थागत अनुशासन पर एक सकारात्मक प्रकाश डाला है। यह निर्णय बताता है कि बड़े पदों पर रहने वाले भी नियमों की सीमाओं के दायरे में ही कार्य कर सकते हैं। और जब पदखत्म हो जाए तो उनका सरकारी संबंध अपने आप समाप्त हो जाता है—एक ग्रास रूट लोकतन्त्र के निमsासिधांत को प्रमाणित करने वाला कदम।

निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व CJI चंद्रचूड़ को सरकारी आवास खाली करने का आदेश न्यायिक प्रतिबद्धता और नियमों के पालन की स्पष्ट मिसाल है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सेवा समाप्ति के बाद सुविधाओं का विस्तार गैरकानूनी है, और सभी उच्च पदों पर ऐसे नियम समान रूप से लागू किए जाएंगे। यह निर्णय न्यायपालिका की पारदर्शिता और ईमानदारी को मजबूत करता है, और भविष्य में इसे विधिक ढांचे में एक मजबूत मिसाल के रूप में देखा जाएगा।


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