बेंगलुरु के कांतेरवा स्टेडियम में जब नेरज चोपड़ा मैदान में उतरे, तो पूरा स्टेडियम गूंज उठा। यह भारत के लिए एक अभूतपूर्व क्षण था—जहां एक ट्रैक एंड फील्ड इवेंट ने इतना बड़ा दर्शक वर्ग खींचा, जितना अब तक क्रिकेट और फुटबॉल ही खींचते रहे हैं। आयोजन की भव्यता, अंतरराष्ट्रीय स्तर की तैयारियां और खिलाड़ियों की ऊर्जा ने इसे सिर्फ एक खेल स्पर्धा नहीं, बल्कि एक उत्सव बना दिया।
नेरज का पहला थ्रो 86.18 मीटर पर जाकर रुका, जो प्रतियोगिता के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाला थ्रो बना। इसके बाद उन्होंने दो और थ्रो किए—84.07 मीटर और 82.22 मीटर—जो दर्शाते हैं कि वे लगातार अच्छे फॉर्म में हैं और पेरिस ओलंपिक की तैयारी को गंभीरता से ले रहे हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक घरेलू आयोजन नहीं था, बल्कि देश में जेवलिन को लोकप्रिय बनाने की दिशा में एक ठोस कदम था।
चोपड़ा क्लासिक में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की भागीदारी ने इसकी गरिमा को और बढ़ा दिया। केन्या के ओलंपिक पदक विजेता जूलियस येगो और श्रीलंका के रुमेश पठिराज जैसे धुरंधरों की उपस्थिति ने इसे मिनी-वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसा माहौल दे दिया। हालांकि उम्मीदों के विपरीत जर्मनी के थॉमस रोह्लर फाइनल तक नहीं पहुँच सके, लेकिन उन्होंने भारत में जेवलिन स्पोर्ट की यह उन्नति देखकर प्रसन्नता ज़ाहिर की।
नेरज चोपड़ा की पहल पर आयोजित यह प्रतियोगिता न केवल खेल प्रतिभाओं को मौका देने का मंच है, बल्कि यह देश के एथलेटिक्स कल्चर को गहराई देने वाला कदम भी है। इस इवेंट के ज़रिए उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारत में ओलंपिक स्पोर्ट्स भी उतना ही लोकप्रिय हो सकता है, जितना क्रिकेट।
आयोजन की तैयारियां अंतरराष्ट्रीय मानकों पर हुई थीं। स्टेडियम की व्यवस्था, थ्रोइंग सेक्टर की तकनीकी गुणवत्ता और खिलाड़ियों के लिए बनाए गए वॉर्मअप एरियाज़ ने इसे वर्ल्ड क्लास इवेंट बना दिया। भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन ने भी इसमें पूर्ण सहयोग दिया और दर्शकों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाया गया।
इस प्रतियोगिता में कई उभरते भारतीय खिलाड़ियों ने भी हिस्सा लिया। सत्यन यादव, जिन्होंने हाल ही में चोट से वापसी की है, उन्होंने 82.33 मीटर का थ्रो करके अपनी प्रतिभा का परिचय फिर से दिया। युवाओं के बीच इस प्रतियोगिता को लेकर उत्साह भी देखने लायक था। हजारों युवा दर्शकों ने मैदान में पहुंचकर साबित किया कि भारत अब ओलंपिक स्पोर्ट्स को भी नई दृष्टि से देखने को तैयार है।
नेरज चोपड़ा ने अपने बयान में कहा कि इस इवेंट को लेकर उनकी भावना सिर्फ खुद को दिखाने की नहीं थी, बल्कि नए खिलाड़ियों को मौका देने और जेवलिन को देश के हर कोने में लोकप्रिय करने की थी। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में इसे और बड़े स्तर पर आयोजित किया जाएगा, और हर साल इसे भारत के अलग-अलग शहरों में लेकर जाया जाएगा।
इस प्रतियोगिता के ज़रिए नेरज एक नया उदाहरण पेश कर रहे हैं—जहाँ खिलाड़ी सिर्फ प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह अपनी खेल विधा को समाज के करीब लाने में भी योगदान देता है। उन्होंने यह साफ कर दिया है कि उनका सपना सिर्फ पदक लाना नहीं, बल्कि भारतीय एथलेटिक्स को एक नई दिशा देना है।
बेंगलुरु में इस आयोजन की सफलता के बाद अब कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत जेवलिन और अन्य फील्ड स्पोर्ट्स के लिए इंटरनेशनल सर्किट में नियमित आयोजक बन सकता है। इससे न सिर्फ देश की छवि सुधरेगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों के लिए भारत को एक भरोसेमंद स्थल के रूप में मान्यता भी मिलेगी।
निष्कर्ष:
नेरज चोपड़ा क्लासिक केवल एक भाला फेंक प्रतियोगिता नहीं रही, बल्कि यह भारत के खेल भविष्य की एक नई शुरुआत बन गई। इस आयोजन ने भारतीय एथलेटिक्स के लिए एक आदर्श स्थापित किया है और यह बताया है कि सही नियोजन, जुनून और उद्देश्य से कोई भी खेल देश की मुख्यधारा में आ सकता है। नेरज ने साबित कर दिया कि मैदान में जीतने वाला खिलाड़ी मैदान के बाहर भी लाखों दिल जीत सकता है। आने वाले समय में यह आयोजन एक परंपरा बन सकता है, जो हर वर्ष देश को एक नई ऊर्जा और खेलों के प्रति नया दृष्टिकोण देगा।
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