आज आंध्र प्रदेश और तेलुगु भाषी जनमानस के लिए पहला एकादशी पर्व मनाया गया, जो धर्मनिष्ठता व आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। इस धार्मिक अवसर पर प्रदेश की राजनीतिक पटल पर दो प्रमुख हस्तियों — पूर्व मुख्यमंत्री एवं टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबु नायडू और आंध्र प्रदेश के नेतृत्व में युवा नेता एन. लोकेश — ने अपने-अपने अंदाज़ में लोगों को शुभकामनाएँ दीं। चंद्रबाबु नायडू ने ट्वीट कर लिखा कि एकादशी का यह पावन दिन भक्ति, सुख–समृद्धि और शांति का प्रतीक है; उन्होंने सभी से अनुरोध किया कि वे इस पर्व पर संयम का पालन करें, ध्यान-योग में संलग्न हों और परिवार में प्रेम व सौहार्द बनाए रखें। उन्होंने साथ ही कहा कि इस दिन की ऊर्जा हमें व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाने के लिए प्रेरित करे।
अपनी ओर से एन. लोकेश ने एकादशी का महत्त्व बताते हुए कहा कि यह समय न केवल व्रत और पूजा का है, बल्कि आत्मावलोकन का भी है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “एकादशी हमें हमारी जिम्मेदारियाँ सिखाती है—व्रत के दौरान संयम और दूसरों की मदद करना ही सच्ची भक्ति है।” उन्होंने युवाओं से अनुरोध किया कि वे भोजन की बर्बादी से बचें और जरूरतमंदों को भोजन दान की पहल करें। इसी पहलू से उन्होंने साफ संदेश दिया कि धर्म केवल आचारों तक सिमित नहीं, बल्कि मानवता और साझा जीवन मूल्यों से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक नेताओं और समाजसेवियों ने भी इस मौके पर सदभावना जताई। कई जगहों पर मंदिरों में कथा-शिक्षण और आरती समारोह आयोजित किए गए, जहां जयघोष, भजन और कीर्तन ने भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाया। आंध्र के चर्चित विष्णु, राम और कृष्ण मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी और उन्होंने पूजा-अर्चना के साथ प्रसाद का वितरण भी किया। अनेक सामाजिक संगठन और स्वयंसेवी संस्था राशन और तैयार खाने का वितरण कर रही थी, जिससे पूजा का उद्देश्य—परिवार में खुशहाली के साथ सामाजिक समर्पण—पूरी तरह पूरा हुआ।
प्रदेश के कई हिस्सों में ग्रामीण इलाकों में युवा स्वयं सेवकों ने संग्रह केंद्रों से प्राप्त वस्तुओं को पैक कर वंचित परिवारों तक पहुंचाया, ताकि एकादशी का व्रत करने वालों को धार्मिक भावना के साथ सामाजिक संवेदना भी महसूस हो सके। इस प्रकार व्रत को केवल जज़्बातों तक सीमित न रखते हुए, स्वार्थपूर्ति से परे दूसरों की जरूरत को समझ अक्षरशः एकादशी रूपी दया का साक्षात्कार कराया गया।
राजनीतिक और धार्मिक संदेशों के बीच एक और समन्वय नजर आया—चंद्रबाबु नायडू और लोकेश के संबोधनों में आत्म-अनुशासन और भलाई के महत्व पर जोर था। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि दोनों नेता केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा की दिशा में नहीं, बल्कि समुदाय निर्माण, मूल्यों की दिशा में भी सोचना चाहते हैं। यह रणनीति उनकी पार्टी के लिए सामाजिक-धार्मिक आधार मजबूत करने के रूप में भी देखने को मिल सकती है।
इस धार्मिक माहौल में आम जनता में एक सकारात्मक ऊर्जा बनी रही। सामाजिक मीडिया पर #Ekadashi के अलावा #TDPEkadashi जैसे हैशटैग वायरल रहे। कई युवा व्रती अपने घर से लाइव आर्टिकल्स, पूजा की तैयारियाँ और भोजन दान की तस्वीरें साझा कर रहे थे, जिससे यह पर्व केवल पारंपरिक अनुष्ठानों में ही सीमित न रह कर संपूर्ण समुदाय की हिस्सेदारी बन गया।
सांस्कृतिक पहलू की बात करें तो काउंटरपार्टी ‘रथयात्रा’ आयोजक भी कोलाबोरेशन में आए थे—उनके द्वारा किया गया सचेत ‘पर्यावरण बचाओ’ अभियान, जहां पूजा बाद विहार स्थलों पर प्लास्टिक उपयोग से बचने और साफ़-सफाई बढ़ाने की शिक्षा दी गई, उसे जनता ने सराहा। इससे साफ़ झलकता है कि एकादशी जैसे त्योहार सिर्फ धार्मिक मांगलिकता का प्रतीक नहीं, बल्कि ही जारी सामाजिक संदेशों का माध्यम भी है।
कुल मिलाकर, इस पहले एकादशी ने दो स्तरों पर प्रभाव छोड़ा—व्यक्तिगत तो परे, सामूहिक भी। यह औपचारिक पर्व नहीं रहा, बल्कि व्यवस्थाओं से ऊपर उठकर समाप्ततन्त्र छोड़ने, संयमित जीवनशैली की ओर ध्यान देने का ब्रह्मांडीय संदेश रहा। चंद्रबाबु नायडू और लोकेश का शुभकामनाओं के साथ सार्वजनिक संदेश भी यही संकेत दे रहे हैं कि हमारी राजनीतिक कल्पना और नेतृत्व भी अपने धार्मिक व सामाजिक मूल्यों से बांधा हुआ होना चाहिए।
इस दिन के अंत तक मंदिरों, घरों और सामाजिक केंद्रों में इस संकल्प की गूंज रही कि व्रत का सार केवल व्यक्तिगत अभिवृद्धि नहीं, बल्कि उसमें अन्य समुदाय को साथ लाने की भावना होनी चाहिए। इससे कई नए रिश्ते बने, कई पुराने टूटे और हर एकादशी पर शोभा पाने वाला नया संदेश भी उभरा—आस्था, क्षमता और सामाजिकता का व्यावहारिक संगम।
आज की प्रथम एकादशी केवल एक धार्मिक दिन नहीं—बल्कि वह दिन है जब एक समुदाय खुद को फिर से स्मरण करता है कि उसकी आस्था उसके व्यवहार, उसके भूखे सहयोग में, और उसके घर-गली तक सत्य और अहिंसा का संदेश ले जाने में है। और जहाँ दो राजनीतिक हस्तियाँ इस बात की बात कहती हैं, वहां राजनीति केवल सत्ता तक सीमित नहीं रहती—बल्कि उस सत्ता से भी ऊपर उठकर अडिग आस्था और साझा जिम्मेदारी की एक मुद्रा बन जाती है।
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